एक दिन मैं एक मित्र के घर बैठा हुआ था । चाय की चुस्कियों के साथ हमारी कई विषयों पर बात हो रही थी ।
हमारा विषय अक्सर जल जंगल और जमीन से ही जुड़ा होता है । हम लोग बात करने में व्यस्त थे । हमें पता नहीं था की मेरे मित्र का एक बेटा जो दस या बारह वर्ष का होगा । वह भी बड़े ध्यान से हमारी वाते सुन रहा था ।
मैने कहा की अब तो सरकार भी हम आदीवासीयों के हित में काम नहीं कर रही है । मध्यप्रदेश हो या छतीसगढ़ , महाराष्ट्र , झाड़खंड में सरकार ने आदीवासीयों की जमीन ‘ कॉरपोरट’ को सौंप रही है जो सरासर असांविधानिक और अन्यायपूर्ण है । ऐसे में तो आदीवासीयों को विस्थापन के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा ।
तभी उनका बेटा मुझसे पूछा – अंकल ये ‘ कॉरपोरट’ क्या होता है ?
मुझे समझ नहीं आ रहा था की उस छोटे से बच्चे को मैं क्या जवाब दूँ ।
थोड़े देर सोचने के बाद मैने उस बच्चे को समझातें हुये बोला – बेटे, देश की आजादी के पूर्व भारत में अंग्रेज़ व्यापार करने भारत आये । और धीरे धीरे अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा जमीन के मार्फत कर लिया और फिर इस देश में अपना साम्राज्य स्थापित किया जिसे ‘ ब्रिटिश गवर्नमेंट ‘ कहते है यानी गोरे अंग्रेज के अधीन हमारा देश । अंग्रेजों के अधीनता से मुक्त होने के लिये इस देश के हजारो लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी तब जाकर यह देश विदेशियों से मुक्त हुआ ।
हमारे देश को आजाद हुये सत्तर वर्ष हो गये । हम आज आधुनिक भारत में रह रहे है । विकसित देशों में शामिल होने के लिये हर तरह से प्रयास कर रहे है । लेकिन इस विकास के दौड़ में भारत का एक ऐसा समाज जो आज तक आधुनिक भारत का हिस्सा नहीं बन पाया जिसे भारत का ‘ जनजाति समुदाय ‘ कहते है ।
वह छोटा बच्चा मेरी बात को बड़े ध्यान से सुन रहा था ।
मैं फिर बोलना शुरू किया ।
बेटे – ठीक आज के संदर्भ में शहरों में अब किसी के पास एक इंच भी जमीन नहीं बचा है । शहरीकरण बड़ी तेजी से बढ़ रहा है । बड़ी बड़ी कम्पनियाँ अब अपने व्यापार को फैलाने और अधिक मुनाफा कमाने के लिये अब उन आदिवासी क्षेत्रोँ में प्रवेश करना चाहते है जहां उन्हें प्राकृतिक संसाधन आसानी से मिल जाये । इसके लिये इन्होनें कई ऐसे संस्थाओ की सेवा भी लेते है जो इन्हें प्राकृतिक संसाधनो के बारे में जानकारी देते है । फिर अपने राजनीतिक पहुंच के बल पर दूरदराज क्षेत्रोँ में रहने वाले आदीवासीयों की जमीन को सरकार की मदद से या विकास या रोजगार के नाम पर कब्जा करतें है । इन कॉर्पोरेट लोगो का इतना मजबूत नेटवर्क है की सीधे सरल आदिवासी समुदाय उनका सामना नहीं कर पाते। सरकार की निति भी इतनी पेचीदा होता है की आदिवासी समाज के लोग अपना हित के बारे में सही जानकारी उन्हें नहीं मिल पाता। आज तक सरकारी योजनाओं द्वारा आदिवासियों को
को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ बल्कि विकास के नाम पर उन्हें ज़बरन अपनी अपनी जमीन छोडऩी पड़ी है और आदिवासी समाज की दुर्दशा हो रही है ।
चालाक और अपना फायदा देखने वाले व्यापारियों को आधुनिक काल का ‘ काला अंग्रेज’ यानी ‘ कॉरपोरट ‘ कहते है ।
अब समझ गए !
यह सुनकर वह बालक बहुत गुस्से से भर गया और कहा – अंकल अब उन ‘ कॉरपोरट ‘ को भगाने के लिये मैं खूब मन लगा कर पढूंगा ।
यह सुनकर मेरा दिल भर आया ।
– राजू मुर्मू
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